भोपाल। रेल पटरियों की आंतरिक जाँच के लिए अब भोपाल मंडल में अत्याधुनिक अल्ट्रासोनिक फ्लॉ डिटेक्शन (USFD) तकनीक का प्रभावी उपयोग किया जा रहा है। इससे ट्रेनों की संरक्षा और परिचालन विश्वसनीयता को नया आयाम मिला है।
क्या है USFD तकनीक?
USFD तकनीक के जरिये रेल पटरियों में समय के साथ विकसित होने वाले आंतरिक दोषों को प्रारंभिक अवस्था में ही चिन्हित किया जाता है।
यह तकनीक दोष का डिजिटल डेटा संग्रहण कर त्वरित विश्लेषण की सुविधा देती है, जिससे तुरंत अनुरक्षण कार्य किया जा सके।
भोपाल मंडल में USFD तकनीक का व्यापक उपयोग
भोपाल मंडल में लगभग 2000 किलोमीटर ट्रैक की नियमित रूप से USFD मशीनों से जाँच की जा रही है।
ट्रैफिक घनत्व (GMT) के आधार पर हर दो से चार माह में विभिन्न सेक्शनों में ट्रैक जाँच होती है।
मंडल में 8 USFD टीमों का गठन किया गया है, जिनमें 15 प्रशिक्षित इंजीनियर कार्यरत हैं।
ये टीमें बी-स्कैन USFD मशीनों और डिजिटल वेल्ड टेस्टर से लैस हैं।
2024-25 में संरक्षा में उल्लेखनीय उपलब्धियां
कुल ट्रैक जाँच : 10,000 किमी
वेल्ड जाँच : 34,000
टर्नआउट जाँच : 4704
स्वीच एक्सपेंशन जॉइंट्स जाँच : 4498
चिन्हित दोष (फ्लॉ) : 861
सभी चिन्हित दोषों की तत्काल मरम्मत कर दी गई, जिससे ट्रेन संचालन में कोई बाधा नहीं आई।
तकनीकी प्रशिक्षण और गुणवत्ता मानक
भोपाल मंडल के USFD इंजीनियरों को समय-समय पर आरडीएसओ लखनऊ और इरिसेन पुणे जैसे संस्थानों में विशेषज्ञ प्रशिक्षण दिया जा रहा है, ताकि वे नवीनतम तकनीकी मानकों के अनुरूप कार्य कर सकें।
संरक्षा के क्षेत्र में नया मील का पत्थर
USFD तकनीक के सफल क्रियान्वयन से भारतीय रेलवे की संरक्षा प्रणाली को नई मजबूती मिली है। यह तकनीक न केवल संभावित दुर्घटनाओं की समय रहते रोकथाम में मददगार साबित हो रही है, बल्कि ट्रैक की विश्वसनीयता और स्थायित्व को भी सुनिश्चित कर रही है।
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